Dhawal kumar 

 बहुत ज़ोर से हँसे थे हम, बड़ी मुद्दतों के बाद,

आज फ़िर कहा किसी ने, "मेरा ऐतबार कीजिये.

 कहा कहा से समेटु तुझे ए ज़िन्दगी 

 हर जगह तू ही तू बिखरी पड़ी है।

 मुझे भी शामिल कर लो गुनहागारों की महफ़िल में

 मैं भी क़ातिल हूँ अपनी ख़्वाहिशों का.

 

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